Cause of heart attack in hindi हार्ट अटैक का कारण क्या है

            हार्ट अटैक 

  दिल का दौरा  - Acute Myocardial Infraction



हार्ट अटैक का कारण क्या है


यह एक ऐसी अवस्था/स्थिति है जिसमें स्टर्नम के पीछे रोगी की

 छाती में बहुत तेज दर्द उठता है (जोकि रोगी की जीभ के नीचे

 'नाईट्रेस' (एञ्जीसिड) लेने के बाद भी आराम/ठीक नहीं होता।)

 इसमें कार्डियक मांसपेशी (Muscle) के रक्त प्रवाह में रुकावट

 के कारण से उस हिस्से/भाग की मृत्यु हो जाती है। यह रोग पुरुषों 

में 45 वर्ष পনা अधिक तथा महिलाओं में 55 वर्ष अथवा अधिक 

आयु में होता है। हृदय पोषक धमनियों की किसी बड़ी शाखा में 

एक थक्का (किलॉट Clot, थाम्बेसिस Thrombus) के काार

ण अथवा उसकी अन्दर की झिल्ली के नीचे विद्यमान Plague में 

रक्तस्राव हो जाने से उत्पन्न Thrombus के कारण पूर्ण रूपेण 

अवरोध होकर हृदय मांस को (मुख्यतः वाम क्षेपक के एक भाग 

को) रक्त मिलना (यानि ऑक्सीजन का मिलना) सहसा बन्द हो 

जाये तो उस भाग के मांस सूत्रों में मृत्यु की प्रक्रिया (Coagula 

tion Necrosis) हो जाती है। इस मृदु हुए अथवा मृत भाग को 

Infarct कहते हैं। कभी कभी एक शाखा के अन्दर प्लेटलेट्स से

 बने ढेर के बड़े हो जाने अथवा उसमें रक्तस्राव के होने से अवरोध 

होता है। यदि अवरोध के कारण मृत हुआ यह भाग बड़ा हो तो वहाँ

 दीवार के मृदु होकर फट जाने से सहसा मृत्यु हो जाती है। यदि 

यह मृत भाग छोटा सा ही हो सारी दीवार में न होकर 

Endocardium

के नीचे थोड़े प्रदेश में हो तो 3-4 सप्ताह तक 

Macrophages इन भरे हुए मांस सैलों को हटा देते हैं और वहाँ

 पर नवीन रक्त वाहिनियों के बन जाने से तथा Fibroblasts के

 आस-पास से इसमें आ जाने से मृत हुए मांस के स्थान पर स्नायु

 तन्तु (Fibrous Tissue, Scar Tissue) आ जाते हैं। 

हालांकि 3 सप्ताह तक वहाँ स्नायुभाव काफी हो जाता है और वहाँ

 रक्तवाहिनियाँ भी बन जाती हैं, तथापि 2 महीना तक मृत मांस

 सूत्रों के स्थान पर स्नायु तन्तु के भलीप्रकार आ जाने से प्रायः 

हृदय मांस में उत्पन्न हुआ Infarct पूर्णरूपेण भर जाता है, परन्तु 

हृदय का वह भाग पतला हो जाने से निर्बल रह जाता है, किन्तु हाँ 

यदि सहसा अवरोध न होकर धीरे-धीरे अवरोध हो और धीरे-धीरे ही

 मांस सूत्रों की मृत्यु होती जाये तथा उनके स्थान पर स्नायु तन्तु भी आता जाये तो इसको Cardiac Infarct न कहकर 

Myocardial Fibrosis कहा जाता है। उस अवस्था में तीव्र 

लक्षण नहीं होते हैं। प्रायः बांयी ओर कोरोनरी आर्टरी की 

Anterior Descending Branch के प्रारम्भ से 2 सेंटीमीटर 

नीचे विरोध (Coronary Occlusion) हुआ करता है, जिससे 

रक्त भाव (Ischaemia) से उत्पन्न Infarct बांये Ventricle 

के एवं क्षेपक कोष्ठों के बीच की दीवार (Interventricular 

Septum) के अगले भाग में और सिरे (Apex) के वाम क्षेपक 

की अगली दीवार में होता है।


जब अवरोध दांयी कोरोनरी आर्टरी के प्रथम भाग पर 

(Circumflex Branch) में होता है तो बांयें बैन्ट्रिकल के 

क्षेपक कोष्ठों के बीच की दीवार में Infract होता है। Left 

Circumflex Artery में अवरोध हो (जैसा कभी-कभी होता 

है।) तो बांये क्षेपक कोष्ठ के बाहर की दीवार में Infarct होता है 

(जो रक्त न मिलने से कुछ फीके रंग का होता है।) इनके आसपास

 का प्रदेश कुछ रक्तस्राव हो जाने से रक्त वर्ण का होता है। वहाँ की

संज्ञा वाहिनियों में रक्त भाव होकर 'शूल' (Pain) की प्रतीति होती 

है। जब संज्ञावाहिनी मर जाती है तो शूल भी नहीं रहता है। यह रोग

 मुख्तयः पुरुषों में होता है तथा स्त्रियों में कम होता है।


प्रमुख कारण


धमनी कला काठिन्य (एथेरोस्क्लेरोसिस) मुख्य कारण ।


•रक्तभार वृद्धि ।


• मधुमेह।


• मेदोवृद्धि।


• मानसिक आवेश।


• प्रबल तनाव।


• अतिश्रम।


• अधिक भोजन का सेवन।


• ब्लड प्रेशर एकदम कम होना (जैसे-रक्तस्राव में)।


• बहुत ठण्डा मौसम।


• मानसिक आघात। बेहोशी लाने वाली औषधियों का प्रयोग।


.• शल्य चिकित्सा (ऑपरेशन)।




                   लक्षण


पूर्वरूप-वेग को 1-2 पूर्व रोगी को हृदय शूल के हल्के-हल्के वेग 

होने एवं कुछ स्वास्थ्य गिरा-गिरा प्रतीत होता है । पड़े हुए 

(विश्रामावस्था में भी) रोगी को हल्के वेग होते हैं । तदुपरान्त (ऐसे 

50-70 वर्ष की आयु वर्ग के व्यक्तियों में) जिनका रक्तभार बढ़ा 

हुआ होता है तथा जिनको प्राय: पहले हृदय शूल के वेग होते रहे हैं

 और अब जल्द-जल्द होने लगे हैं, अथवा अजीर्ण/बदहज्मी 

(इण्डाईजेशन) सूचक अजीब से लक्षण होते रहे हैं। आराम से पड़े

 हुए या सोते हुए जब हृदय गति के मन्द हो जाने से Coronary

 Artherosclerosis से ग्रस्त हृदय को रक्त मिलना ही सर्वथा 

ही बन्द हो जाता है (हायपोक्सिया अथवा एनोक्सिया हो जाता है) 

तब हृदय मांस में इन्फर्क्ट होकर सहसा तीव्र व असहनीय हृदयशूल

 होता है जो उरोस्थि (स्टनर्म) के मध्य अथवा अधिकतर निम्न भाग

 के पीछे एवं वाम बाहु या दोनों बाहुओं में अंगुलियों तक या ऊपर 

कन्धों, अधोहनु और ग्रीवा तक प्रसरण करता है अथवा दोनों 

Scapulae के बीच प्रदेश तक जाता है । मनुष्य को होने वाले 

समस्त शूलों में यह 1. प्रबलतम शूल है। यह क्रमश: बढ़कर 

निरन्तर मिनटों अथवा घंटों तक (जब तक कि हृदय के रक्तविहीन 

प्रदेश की संज्ञा वाहिनियाँ जीवित रहती हैं) बना रहता है। (यह 30 

मिनट के लगभग विशेष रहता है।) और अत्यन्त वेदनाजनक होता

 है (जबकि साधारण शूल मात्रा 1-2 मिनट ही रहता है।) रोगी की 

अपनी छाती जैसे शिकन्जे में कसती जा रही है, अथवा रांची जा 

रही है या दबायी जा रही है या कुचली जा रही है अथवा पीसी जा 

रही है प्रतीत होती है। अतः रोगी को अत्याधिक बेचैनी होती है। दर्द

 के समय उसको बार-बार वमन (कय) भी होती है और श्वास 

कृच्छ्रता का लक्षण भी हो सकता है। इस दर्द के होने के साथ ही 

रोगी का चेहरा चिन्ता या भय से ग्रस्त हो जाता है तथा फींका व 

शीत (ठण्डा) स्वेद (पसीना) से युक्त हो जाता है (अर्थात शूल, 

सर्वाङ्ग शैल्य (कोलेप्स Collapse) और श्वास कृच्छता के लक्षण 

होते हैं। रोगी स्वयं को अत्यन्त निर्बल अनुभव करने लगता है। रोगी

 को ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि उसका अंत काल सन्निकट है। 

कभी-कभी पेट में दर्द लगता है और साथ ही कय/वमन के वेग 

लगते हैं। (तब चिकित्सक को 'पेप्पिटक अल्सर' का सा भ्रम हो

 सकता है।) रोगी की नाड़ी तीव्र, अस्पष्ट, अत्यन्त निर्बल यानि 

छोटी (Tic-Tac) प्रकार की होती है, जिसकी प्रति मिनट गति/

चाल 100 के लगभग होती है तथा बहुत विषम भी होती है अर्थात् 

या तो हार्ट ब्लॉक होता है अथवा असमायिक स्पन्दन (इक्टोपिक 

बीट) सुनाई पड़ता है। असमायिक स्पन्दन गति 30% के लगभग

 रोगियों में Atrium से तथा 50% के लगभग रोगियों में 

Ventricle में से आरम्भ होती है। इनसे उत्पन्न टैकीकार्डिया एक 

अशुभ लक्षण है। हृदय स्पंदन की निर्बलता से रक्तभार गिरकर 

100mmhg एवं इससे भी नीचे आ जाता है। रोगी का तापमान 

नार्मल से कम हो जाता है। हालांकि रोगी को इस दिन से हल्का सा

 ज्वर होता जाता है (जो लगभग एक सप्ताह रहता है।) हृदय का

 प्रथम शब्द निर्बल होता है। हृदय के दोनों शब्द एक से सुनाई पड़ते

 हैं एवं बीच में दोनों अन्तर भी एक जितने हो जाते हैं । 

(Emproycardia) ग्रीवा की शिरायें फूली हुई दीखती हैं, पीठ 

पर छाती के निम्न भाग पर रल्स (Reles) सुनाई पड़ते हैं। रोगी के

 हाथ-पैर भी तीव्र सिरा संकोच (Vaso constriction) के 

कारण फीके दिखाई पड़ते हैं। यह संकोच हृदय की निर्बलता 

(कोलेप्स Collapse) के कारण लगता है। इस प्रकार रोगी उस 

समय सदमा/शॉक (Shock) की अवस्था में होता है। Cardiac

 Infarct Trauma के कारण ही हृदयशूल और आघात (शॉक) 

लगने के लक्षण हो सकते हैं।5-7 दिन तक सीरम लेक्टिक एसिड 

Dehydroge nase बढ़ा हुआ मिलता है। रोगी के सीरम में 

प्रायः यूरिक एसिड की मात्रा नार्मल से (8 मिली० % तक) अधिक 

पाई जाती है । (इसकी वृद्धि इस रोग का कारण या परिणाम इस 

विषय में अभी तक निश्चय नहीं हो पाया है।) रोगी को प्रोबेनेसिड 

(Probenecid) पेटेण्ट व्यवसायिक नाम बेनसिड टेबलेट 500 

मिग्रा० (Bencid) निर्माता-जेनो को देने से रोगी को लाभ तो

 अवश्य होता है।

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