पुरुषों के गुप्त रोग | स्वप्न दोष (Night Discharge)|swapandosh ke karan
पुरुषों के गुप्त रोग
स्वप्न दोष (Night Discharge)
पर्यायवाची-नाइटफाल (Nightfall), पोल्युशन (Pollution) नेचुरल इमेज नाइट ड्रीम, उर्दू (हिकमत में एहतलाभ), धातु गिरना। स्वप्न प्रमेह।
जब पुरुषों में निद्रावस्था में (रात अथवा दिन में) स्वप्नावस्था में
स्वतः वीर्यपात हो जाता है तो ऐसी अवस्था को 'स्वप्न दोष' कहा
जाता है। हालांकि यह युवक वर्ग में उद्दीप्त यौन प्रवृत्ति व इच्छा की मानसिक और शारीरिक तृप्ति हेतु प्राकृतिक सुविधा (नारी संसर्ग) के अभाव में वीर्यपात होने की (वीर्य के निकल जाने की)
स्वभावित क्रिया है। अरस्तु 1 माह में 2-4 बार स्वप्नदोष होना
सामान्य/प्राकृत है। यह कोई रोग नहीं होता। अत: इसकी चिकित्सा
करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु यदि स्वप्नदोष
1 माह में 8-10 बार अथवा इससे इधिक बार होने लगे तो वह रोग
है और उसकी चिकित्सा की आवश्यकता होती है तथा उसकी
समुचित चिकित्सा होनी/करानी ही चाहिए। इसे लक्षणों के द्वारा
सामान्य स्वप्न दोष से अलग करके पहचानना आवश्यक है, क्योंकि
यदि विकृतिजन्य स्वप्न दोष को स्वाभाविक स्वप्न दोष समझकर
समुचित चिकित्सा न की गई तो रोगी/युवक अनेक अन्य रोगों
(यथा-शीघ्रपतन तथा नपुंसकता नामर्दी) आदि से ग्रस्त हो सकता है।
रोग के मुख्य कारण
•वासनामय, हिन्दी पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का अधिक पठन-पाठन ।
•रात या दिन में वासनामय, गन्दी फिल्मों, नग्न चित्रों (स्त्री पुरुषों
की वासनामय/सम्भोगरत नग्न चित्रों की एलबम देखना), ब्लू
फिल्मों का देखना अथवा ऐसी फिल्मों का अधिक देखना जिसमें
नायक-नायिका बार-बार प्रेमालाप (लिपटना-चिपटना, चुम्बा-चाटी आदि) करते हों।
•टी०वी० चैनलों पर अधिक उत्तेजनात्मक कार्यक्रमों को देखना।
• गन्दे एवं बुरे विचारों के लागों की संगति।
• हस्त मैथुन करने की प्रवृत्ति/लत।
•कम आयु में ही स्त्री प्रसंग/समागम की अधिकता।
मादक व उत्तेजनात्मक पदार्थों का सेवन (यथा-शराब, चरस, गांजा आदि का सेवन
• दैनिक रचनात्मक कार्यों ध्यान लगाकर मात्र कामुक (सैक्स) के सम्बन्ध में विचारशील रहना/सोचना।
•किसी सुन्दर युवती के साथ रहना।
• अधिक मिर्च-मसालेदार गर्म प्रकृति भोजन करना।
•शारीरिक वेग (मुख्यतः मल-मूत्र के वेग/हाजत) को अधिक समय तक बलात रोकना।
•साइकिल या घोड़े आदि की अधिक सवारी करना।
•अधिक रोमान्टिक वातावरण में रहना।
•शारीरिक शक्ति की क्षमतानुसार शारीरिक परिश्रम में कमी। नरम/मुलायम (गुदगुदी) बिस्तर पर लेटना/शयन करना।
•कम आयु में ही वेश्या गमन करना।
•स्वास्थ्य नियमों का पालन न कर गलत/त्रुटिपूर्ण आहार-विहार। निरन्तर अजीर्ण या कब्ज रहना।
• भय, चिन्ता आदि मानसिक उद्वेग।
• अश्लील नृत्य देखना, अश्लील/उत्तेजक गीत-संगीत सुनना।
रोग के मुख्य लक्षण
•शरीर में सुस्ती/आलस्य बने रहना, किसी भी कार्य को करने में मन न लगना।
• शारीरिक अंगों-प्रत्यंगों में टूटन जैसी पीड़ा की अनुभूति।
• जमुहाइयाँ का अधिक आना। भूख का खुलकर न लगना।
• अल्प परिश्रम युक्त कार्य करके ही थकावट हो जाना।
• चेहरे की रौनक/सौन्दर्यता में कमी।
स्मरण शक्ति/याददाश्त का कम हो जाना।
• बात-बात पर शीघ्र की क्रोध/गुस्सा आ जाना।
सिर में भारीपन तथा चक्कर बने रहना।
• कभी-कभी मूत्र के साथ वीर्य का निकल जाना।
अपने को सदैव स्वस्थ/बीमार समझना।
• आत्मविश्वास में कमी।
• हथेलियों तथा पैरों के तलवों में जलन होना/आग निकलना।
मुख और कण्ठ (गले) का सूखना।
रोग की अधिकता में सम्पूर्ण शरीर क्षीण (कमजोर) तथा पीत वर्ण
(पीला-सा) हो जाता है। गाल का पिचक जाते हैं तथा नेत्र भीतर
का धँस जाते हैं। दृष्टि निगाह कमजोर हो जाती है । सिर के फेश
(हेयर्स) सफेद होने लगते हैं, सिर, कमर व सिर आदि सम्पूर्ण शरीर
में दर्द बना रहता है। हथेलियों और तलुवों से पसीना अधिक
निकलता है। हृदय दुर्बल हो जाता है और हृदय की धड़कन बढ़
जाती है। स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। मस्तिष्क (दिमाग) खाली-
खाली सा रहने लगता है। जीवन में निराशा व निरुत्साह समा जाता है।
स्वप्न दोष की वृत्ति ही अन्त में ध्वजभंग तथा पुरुषत्व हीनता/
नामर्दी (इम्पोटेन्सी) का कारण भी बन जाती है। वीर्य में शुक्राणुओं
की कमी से संतानोत्पादन शक्ति भी क्षीण हो जाती है। स्त्री प्रसंग/
समागम क्रियाओं शीघ्रपतन (शीघ्र ही वीर्य स्खलित हो जाना आदि की ओर अग्रसरित होते हुए अन्तः नपुंसकता हो जाती है।
विशेष यह रोग-तेल, गुड़, अचार आदि खट्टे पदार्थ, लहसुन, प्याज
एवं कामोत्तेजक पदार्थ (यथा-अण्डा, मांस, मछली) का अधिक
सेवन, रात को भोजन देर से करना तथा भोजन करके तुरन्त ही
सो जाना अथवा रात को गर्म दूध पीकर सुरनत सो जाना, रात्रि
जागरण दिन में शयन करना, कसकर लंगोट बाँधना (जिससे
जननेन्द्रिय में उत्तेजना बनी रहती है।), शिश्नमुण्ड की त्वचा के
नीचे सुपारी/सुपाड़ा पर मैल/गन्दगी एकत्रित होना तथा खुजली
होने आदि से भी यह रोग (स्वप्न दोष) हो जाता है। प्रायः यह भी
देखा गया है कि अत्याधिक हस्तमैथुन करते रहने के बाद इस गन्दी आदत/लत को छोड़ देने पर भी स्वप्न दोष होने लगते हैं।
• इस भयानक रोग की आधार (बेस) पृष्ठभूमि क्या है? सत्यता तो
यह है यह एक मानसिक रोग है तथा इसे उत्पन्न होने के लिए
एद्विषयक संस्कारों से मनरंजित किया जाता है। कामेच्छा से
लेकर स्वप्न दोष तक की क्रिया निवृत्ति का क्रमिक मानसिक
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