what is blood pressure in hindi hypertension

             


 हृदय संस्थान के रोग

               उच्च रक्त (उच्च रक्तचाप)


रोग का परिचय, कारण और लक्षण


यह दबाव (प्रेशर) जिससे रक्त धमनियों (कलाकारों) में प्रवाह करता है 

है किको ब्लड / रक्तदाव (ब्लड प्रेशर) कहते हैं। 

यह प्रत्येक व्यक्ति में, प्रत्येक आयु में अलग अलग होता है और

 समय के साथ कम या अधिक (लो या हाई) होता रहता है। 

रक्त-विकार, तनाव, भय, परिश्रम, विश्राम (बैठने-लेटने), दर्द, 

मानसिक अवस्था, पेट की खराबी (कब्ज, गैस) या अन्य कारणों से कम या अधिक हो सकती है।

 विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) (विश्व हैल्थ आर्गेनाइजेशन) के 

तदनुसार मानव मन में ब्लड प्रेशर 160/95 mmHg OR 

उसके ऊपर / अधिक हो तो उसको हाई ब्लडप्रेशर '(उच्च रक्त) मानना ​​चाहिए। 

सामान्य / प्राकृत (नार्मल) ब्लडप्रैशर वयस्क पुरुष 120/90 mmHg और बच्चों में 100/60 mmHg माना जाता है। 

स्त्रियों के पुरुष पुरुषों की अपेक्षा 3% ब्लड प्रेशर कम होता है।


 ब्लड प्रेशर को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक नीचे लिखे गए हैं -

• धमनियों की लचक।

• कार्डियक आइटम।

• रक्त की मात्रा और गाधापन।

स्वस्थ व्यक्ति में - प्रकुञ्चनीय रक्त गति (सिस्टोलिक प्रेशर /

 सिस्टोलिक प्रेस- सुनिश्चित) -100-150 mmHg और सीटट्रापार

 अंडर (डायास्टोलिक प्रेशर / डायस्टोलिक प्रेसीडेंट) 60-90 

mmHg सामान्य / प्राकृत अमृत यानि नार्मल माने जाते हैं।


रक्त भार वृद्धि का रोग-15-20% हृदय रोगियों में पाया जाता है।

 आम लोगों में से 10% लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। 

50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में से 50% के लगभग व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित हैं। 

संसार में जितनी मृत्यु होती है उनमें 20% के लगभग इसी तरह की बीमारी होती है।


• यह रोग ग्रामीणञ्चलों में रहने वाले लोगों की अपेक्षा शहरों में रहने वाले लोगों में अधिक मिलता है।

• डाय (डायबिटीज) के रोगी और मोटे लोग भी इस रोग से पीड़ित मिलते हैं।

• अधिक मानसिक परिश्रम और अधिक भाग दौड़ करने वाले लोगों में भी यह रोग हो जाता है।

• नमक अधिक मात्रा में खाने से नमक शरीर के पानी को रोककर ब्लड प्रेशर को बढ़ा देता है।


• पुरुषों और स्त्रियों में इस बीमारी के हो जाने की सम्भावना समान रूप से होती है। 

आनुवांशिकता-इसकी गणना महत्वपूर्ण कारणों में होती है, क्योंकि

 यदि किसी व्यक्ति के (दोनों) माता-पिता को यह बीमारी है

 (हाइपरटेन्शन) हो तो उस व्यक्ति को हाइपर क्लास होने की

 सम्भावना 50% रहती है। इस प्रकार यह टास / रोग पीढ़ी दर पीढ़ी

चलता रहता है।


रोग के प्रकार (प्रकार)

इस बीमारी को नीचे लिखे तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं

 (ए) कारणों के अनुसार।


(बी) क्लीनिकल (क्लिनिकल) -इस बीमारी का तीव्रता का पता लगता है।


(ग) चिकित्सा के अनुसार।


कारणों के अनुसार प्रकार (अंतर)

1. प्राइमरी-इजेन्शियल या अज्ञात। 


2. द्वितीयक (सैकेण्डरी- माध्यमिक) हाइपर एंड।


3. वृक्क / अंडरवियर से संबंधित (रीनल- रीनल)


4. अंतःस्रावी- (इण्डोक्राइन- अंतःस्रावी)


5. न्यूरोजेनिक (न्यूरोजेनिक)


6. गर्भाधान (टाक्सीमिया आंफ प्रेग्नेन्सी- गर्भावस्था का विषाक्तता)


7. रक्त प्रवाह में रूकावट से।


8. विष / जहर खाने से।


9. दवाएँ।


10. अन्य।


क्लिकल-इसको नीचे लिखे रक्त के अनुसार बांटते हैं -


ब्लड प्रेशर सिस्टोलिक प्रेशर डायास्टोलिक प्रेशर का स्तर डायस्टोलिक

                        सिस्टोलिक दबाव    


  कम 140-180 mmHg 90 - 100 mmHg

 

 मध्य का 180-200 mmHg 110 - 125 mmHg                                                                          

 

अधिक 200-220 mmHg 125 - 140 mmHg


 बहुत अधिक 221 अधिक अधिक 141। अधिक



रोग के लक्षण (लक्षण)


इस बीमारी से पीड़ित रोगियों में अलग-अलग लक्षण मिलते हैं। बहुत

 से रोगियों में ब्लड प्रेशर अधिक होने पर भी कोई लक्षण नहीं

 बल्कि ऐसे लोगों को प्राप्त करें जब किसी अन्य रोग की चिकित्सालय-

चिकित्सक के पास जाते हैं फिर जांच- (निरीक्षण / परीक्षण) करने पर

 ब्लड प्रेशर अधिक मिलता है।


 ये लक्षण नीचे लिखे प्रकार के होते हैं

• सिरदर्द (इस रोग का यह मुख्य लक्षण है।) रोगी को सिर में

 भारीपन तथा कनपटी में चब-चब सी लगती है। सुबह के समय

 सिरदर्द अधिक होता है।


•थकावट।


• चक्कर आना।


• वमन/वय होना।


• अनिद्रा/नींद न आना (इस कारण रोगी पूरी-पूरी रात करवटें बदलता रहता है।)


• स्मरण शक्ति की कमी।


• बार-बार मूत्र त्याग।


• नकसीर

(नाक से खून निकलना)।


• हृदय का जोर-जोर से धड़कना।


• कानों में सीटी सी बजना।


• बेचैनी तथा स्वभाव में चिड़चिड़ापन।


रोग के चिन्ह (Signs)


नाड़ी/ /नब्ज (पल्स-Pulse)-

रोग से पीड़ित रोगी की नाड़ी की तेज गति सरता पूर्व अनुभव की जा सकती है। 

ब्लड प्रेशर अधिक होने पर रोगी की कनपटी की शिरायें/नसें तथा

 केरोटिक धमनी (अटिरीज Arteries) स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

• हाइपरटेंशन होने पर रोगी के हृदय का बांया निलय बढ़ जाता है 

और धड़कन भी बढ़ जाती है।

 हृदय की सामान्य/प्राकृत आवाज 'लब-डब' में परिवर्तन आ जाता है।

 • रोगी के डॉक्टर के पास आने पर कुछ समय आराम/विश्राम 

करवा कर ही उसका ब्लड प्रेशर आरामपूर्वक बैठाकर या लिटाकर 

देखना चाहिए। हाथ तथा पैर का ब्लड प्रेशर अलग-अलग जांच कर देखना चाहिए। 

• इस रोग से पीड़ित रोगी की दृष्टि पटल की जांच अत्यावश्यक है। 

बहुत दिनों तक यह रोग होने पर रोगी को आंखों से दिखाई देना

 कम हो जाता है। बहुत से रोगियों में हाइपरटेंशन के कारण 

दृष्टिपटल में परिवर्तन आ जाते हैं (जो सदैव के लिए होते हैं)

अक्षिबिम्ब शोफ (पेपीलोएडीया) हाईपरटेन्शन की अग्रिम

 (एडवान्स) स्थिति का परिचायक है।


• लम्बे समय तक इस रोग के रहने पर रोगी की धमनियों में परिवर्तन आ जाते हैं तथा 'धमनी काठिन्य'.

(Arterio sclerosis आर्टरी स्केल रोसिस) नामक विकृति/रोग उत्पन्न हो जाती है। 

इसमें-रोगी की धमनियां मोटी तथा उनकी भित्तियों/दीवारों की 

प्राकृतिक लचक (इलास्टीसिटी Elasticity) नष्ट हो जाती है, 

जिससे उनका मार्ग संकीर्ण/तंग होकर रक्त प्रवाह में अवरोध/कष्ट उत्पन्न हो जाता है । 

यह परिसरीय प्रतिरोध- (पेरिफेरल रस्सिटेण्ट Peripheral

 Resistance) को बढ़ा देता है, जिससे रक्तचाप और अधिक हो जाता है।


रोग के उपद्रव (Complications)

हाइपरटेंशन से पीड़ित रोगी में-नीचे लिखे अंगों में परिवर्तन आते हैं


हृदय (Heart)

हृदय शूल

(एंजाइना पेक्टोरिस Angina Pectoris)-यह

 कोरोनीर धमनी काठिन्यसे उत्पन्न होता है।


• हृदयगति का रूक जाना (Heart Failure) -हृदय के बाईं 

ओर के निलय कीगति रूक जाना।


वृक्क/गुर्दे (Kidneys)

• हाइपरटेंशन में-रोगी के मूत्र में प्रोटीन आना आरम्भ हो जाता है । 

• रीनल फेल्योर 10-20% रोगियों में हो जाता है।


दृष्टिपटल (Retina)

इसमें हाइपरटेन्सिव रेटिना पेथी के परिवर्तन दिखाई देते हैं।

 • रेटिना की छोटी धमनियां-मोटी हो जाती हैं।

• ब्लड प्रेशर अधिक होने की स्थिति में रक्त स्राव हो सकता है।

 • अक्षिम्बशोफ (पेपरलीलोएडीमा) प्रयोजनों (एडवान्स) स्थिति में मिलता है।


मस्तिष्क (मस्तिष्क)

• मस्तिष्क में रक्त स्त्राव।


• मस्तिष्क में स्थानीय अरक्तता।


(इसके कारण से)

(स्ट्रोक- स्ट्रोक) हो जाता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है।


जांच (जांच)

• रक्त की जांच


• ब्लड यूरिया


• सेराम कियेटिन और सेराम पोटेशियम।


• ब्लड शुगर।


• सेराम प्रो।


• सेराम-लिपिड।


छाती का छाया चित्र (एक्स-रे) -

इससे रोगी के दिल बढ़ने / बढ़ाने होने या उसके आकार में परिवर्तन का पता लगता है।


मूत्र परीक्षा-

मूत्र में प्रोटीन, रक्त और शुगर (चीनी) जांच की जाती है।

 उनकी अतिरिक्त हारमोन्स की मात्रा भी देखी जाती है।




ई 0 सी 0 जी0-

अधिकांश रोगियों में यह सामान्य आता है, किन्तु जिन रोगियों में

 हार्ट फेल्योर या लैफ्ट बैन्ट्रीकुलर हाइपरट्रोपी हो-वह सभी

 परिवर्तन

ईसीजी में पतालग जाते हैं।


आईवीपी (अंतःशिरा पाइलोग्राफी) -

वृक्क / शर्करा के रोगों का पता लगाने के लिए यह जांच आवश्यक है। इस 

जांच से मरीज के ग्लिन ठीक से कार्य कर रहे हैं या नहीं

 कोई जन्मजात रोग है या उनकी बनावट / रचना में कोई त्रुटि नहीं है /

नक्स तो नहीं है? यह पता लग जाता है।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Cause of heart attack in hindi हार्ट अटैक का कारण क्या है

पुरुषों के गुप्त रोग | स्वप्न दोष (Night Discharge)|swapandosh ke karan

बिजली का झटका लग जाना । ( Electric current/Electrical Injuries) । How to treatment of Electrical Injuries in hindi